Description
ओमा शर्मा समकालीन कथा-साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। रचना में कुछ कठिन, दुर्लभ, जटिल और कभी-कभी स्तब्धकारी क्षणों को पकड़ पाने की छटपटाहट उनसे लिखवाती है। ‘भविष्यद्रष्टा’, ‘वास्ता’, ‘घोड़े’, ‘कारोबार’ और ‘दुश्मन मेमना’ सरीखी उनकी कहानियाँ इस बात का प्रमाण हैं, जिन्होंने कथा-साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बनाया है। किंतु इस पुस्तक में ओमा शर्मा के रचनात्मक व्यक्तित्व का एक सर्वथा नया आयाम पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत होगा - एक संवेदनशील, जिज्ञासु, जिम्मेदार साक्षात्कारकर्ता का। कला और रचना के सार्वजनीन मसलों पर बेबाकी और तीखेपन में बेजोड़ ढंग से मुठभेड़ करते ये साक्षात्कार बताते हैं कि उन्हें किस तरह दूसरों के अंतस में पैठने की महारत हासिल है और यह भी कि किस तरह साक्षात्कार-विधा को कमोबेश जीवनी की सरहदों तक ले जाया जा सकता है। इन साक्षात्कारों का वैशिष्ट्य यह है कि अपनी जिज्ञासाओं और प्रश्नों के समाधान पाने के लिए ओमा अकसर निजी जीवन और अंतरंग संबंधों के बारे में निर्मम प्रश्न करते हुए भी उन्हें सस्ते और कामदर्शी (वाॅइरिस्टिक) होने से बचा लेते हैं। साहित्य और कला-जगत के महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों से किए गए ये वार्तालाप उनकी रचना के स्त्रोतों और रचना-प्रक्रिया के तत्त्वों के अतिरिक्त सारे ज़माने के सवालों और चिंताओं को अपने दायरे में ले आते हैं। हिन्दी-साहित्य में दिग्गज लेखकों के साक्षात्कार प्रचुरता में मिलते ज़रूर हैं, लेकिन वहाँ साक्षात्कार-कर्ता और साक्षात्कार-दाता के बीच आदर या स्तुतिभाव इतना ज्यादा हावी रहता है कि रचना से परे लेखकीय मंशाओं की निशानदेही नहीं हो पाती। शायद यह उसका उद्देश्य भी नहीं होता। यहाँ संकलित संवाद-साक्षात्कारों में उस परम्परा की लगभग अवहेलना से ज्यादा, एक विद्यार्थीनुमा सहजता और स्वच्छंदता से इन उस्तादों की कला, लेखकी, वैचारिकी, रचना-प्रक्रिया और इन सबके आसवन को अंजाम देते सृजन को उनके तमाम अंतर्विरोधों और आवेगों के साथ छूने की नीयत रही है। बारहा ‘प्रोवोक’ करने को ‘प्रोब’ करने की प्रविधि की तरह इस्तेमाल में लिया गया है। सभी लेखकों-कलाकारों के चयन के पीछे इनकी रचनात्मकता और विशिष्टता के प्रति मेरा सम्मान और लगाव रहा है। यह अलग बात है कि कमोबेश सभी से आत्मीयता भी रही है, जिसकी बिना पर उनके अनछुए या असहज करने वाले कोनों की तरफ कुछ हद तक उन्हें एकाग्र कर सका। वैसे कहना होगा कि मेरे कुछ-कुछ दुस्साहसी और निजता को कुरेदते प्रश्नों को सभी ने सही परिप्रेक्ष्य में लिया। मनुष्य की स्वतंत्रता को मैं सबसे महत्वपूर्ण मानता हूँ और धर्म, समाज तथा राज्य हर देशकाल में इसके विरोधी रहे हैं। - प्रियवंद यदि स्त्री की आज़ादी से आपका मतलब सिर्फ स्त्री द्वारा अपनी देह के मनमर्जी इस्तेमाल से है, तो मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ। - मन्नू भंडारी मैं समझता हूँ, हर व्यक्ति की जि़ंदगी में, विशेषकर रचनाकार की जि़ंदगी में, सेक्स का बड़ा हाथ होता है। - राजेंद्र यादव आप कलाकार हैं तो क्या जरूरी है कि आप (गरीबी के) अँधेरे में ही रहें? - एम. एफ. हुसेन ईश्वर होता, तो दुनिया में इतना अन्याय हो रहा है, कभी तो वह उसके खिलाफ आकर खड़ा होता। - शिवमूर्ति
ओमा शर्मा समकालीन कथा-साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। रचना में कुछ कठिन, दुर्लभ, जटिल और कभी-कभी स्तब्धकारी क्षणों को पकड़ पाने की छटपटाहट उनसे लिखवाती है। ‘भविष्यद्रष्टा’, ‘वास्ता’, ‘घोड़े’, ‘कारोबार’ और ‘दुश्मन मेमना’ सरीखी उनकी कहानियाँ इस बात का प्रमाण हैं, जिन्होंने कथा-साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बनाया है। किंतु इस पुस्तक में ओमा शर्मा के रचनात्मक व्यक्तित्व का एक सर्वथा नया आयाम पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत होगा - एक संवेदनशील, जिज्ञासु, जिम्मेदार साक्षात्कारकर्ता का। कला और रचना के सार्वजनीन मसलों पर बेबाकी और तीखेपन में बेजोड़ ढंग से मुठभेड़ करते ये साक्षात्कार बताते हैं कि उन्हें किस तरह... Read More